घर आँगन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

घर आँगन सुन्दर सजे, मिल जुल नित सहयोग।
त्याग शील पौरुष सुभग, नीति प्रीति बिन रोग।।

खिले कुसुम घर प्रगति के, आँगन भारत देश।
सुखद शान्ति सद्भावना, मानवीय परिवेश।।

आँगन तुलसी पूजिता, उपयोगी शुभकाम।
तन धन मन सुख सम्पदा, अन्त काल अविराम।।

श्री शोभा तनया सुता, पिता मान पर गेह।
करुणा ममता शुचि ख़ुशी, यशो निधि बस नेह।।

घर शोभे नित अंगना, मातु वधू बहु रूप।
धन वैभव ख़ुशियाँ सुयश, हेतु दीन या भूप।।

दिल के आँगन में कहीं, महके गन्ध बयार।
प्रीत भ्रमर संंगीत से, सजनी गेह बहार।।

परहित नैतिक मूल्य से, जीवन आँगन साज।
धीर शील गुण कर्म ही, नवजीवन आग़ाज़।।

नीति रीति शुभ घर सजे, त्याग न्याय आचार।
मान दान विश्वास से, बने स्वर्ग परिवार।।

अपना घर सुरभित चमन, लघुतर भी अभिराम।
ग्रीष्म शीत बरसात से, रक्षक शुभ सुखधाम।।

सबको अपना घर मिले, खिले सुखद मुस्कान।
स्वाभिमान बन ज़िंदगी, शान्ति कान्ति यश मान।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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