प्रीति त्रिपाठी - नई दिल्ली
है समय का गीत मद्धिम - कविता - प्रीति त्रिपाठी
शुक्रवार, मई 21, 2021
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है,
रात्रि की अवहेलना में
रूठ जाती कामना है।
स्नेह जितना था संजोया
प्रीत में, मनुहार में
आज वे नाते तिरोहित
सब हुए संसार में,
भावना को शब्द देकर
युद्ध सा उनसे ठना है।
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है।
वेदना से तिक्त हूँ
अधिकार ले कर क्या करूँ?
मौन की निस्तब्धता
साभार ले कर क्या करूँ?
जो हृदय की भूमि पर
बस चोट करने को बना है।
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है।
रिक्तियाँ जो भर सकें
उनका अहम भी शांत हो
किन्तु तब तक मोह में
अन्तस् हमारा क्लांत हो,
रूढ़ियों की नींव ने
संघर्ष का ये पथ जना है।
है समय का गीत मद्धिम,
भोर का क्षण अनमना है।
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है,
रात्रि की अवहेलना में
रूठ जाती कामना है।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर