है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है,
रात्रि की अवहेलना में
रूठ जाती कामना है।
स्नेह जितना था संजोया
प्रीत में, मनुहार में
आज वे नाते तिरोहित
सब हुए संसार में,
भावना को शब्द देकर
युद्ध सा उनसे ठना है।
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है।
वेदना से तिक्त हूँ
अधिकार ले कर क्या करूँ?
मौन की निस्तब्धता
साभार ले कर क्या करूँ?
जो हृदय की भूमि पर
बस चोट करने को बना है।
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है।
रिक्तियाँ जो भर सकें
उनका अहम भी शांत हो
किन्तु तब तक मोह में
अन्तस् हमारा क्लांत हो,
रूढ़ियों की नींव ने
संघर्ष का ये पथ जना है।
है समय का गीत मद्धिम,
भोर का क्षण अनमना है।
है समय का गीत मद्धिम
भोर का क्षण अनमना है,
रात्रि की अवहेलना में
रूठ जाती कामना है।।
प्रीति त्रिपाठी - नई दिल्ली