प्रेम की तमन्ना - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"

तुम सरिता सी बहती जाओ,
मैं अनन्त सागर बन जाऊँ।

तुम शबनम बूँद-सी बन जाओ,
मैं गुलाब गुल-सा खिल जाऊँ।

तुम निर्मल नदियाँ की धार बन जाओ,
मैं गहरी झील-सा भर जाऊँ।

तुम मेरे जीवन में प्रेम की भोर बन जाओ,
मैं तुम्हारे प्रेम की सुख साँझ बन जाऊँ।

तुम मन की वीणा के तार बन जाओ,
मैं राग प्रेम का गीत बन जाऊँ।

तुम मीठा अहसास बन जाओ,
मैं तुम्हारे मन की प्यास बन जाऊँ।

तुम साँसों के मधुबन में महकती जाओ,
मैं प्रीत की सुगंध बन जाऊँ।

अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)

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