ख़्वाबों को इतना जल्दी
समेट कर न रख अभी,
मंज़िलें फिर आएगी,
सब्र कर, शौक मत कर अभी।
जिस पड़ोस को
तारक मेहता शो में देखते हो,
वो समाज सो गया हैं,
रंगीं ख़्वाब न देख अभी।
कोरोना महामारी के इस दौर में
ख़ल्क़ मर रहे हैं,
वक़्त का तक़ाज़ा हैं,
ऑक्सीजन चाहिए अभी।
इन ज़हरीली फ़ज़ाओं में
सिसकियाँ बह रही हैं,
तन्हाई से कर गुफ़्तगू,
बाहर ज़िंदगी मत ढूँढ़ अभी।
मक़ाम-ए-मोहब्बत में
मातम ओ कर्फ़्यू लग रहा हैं,
संसार अब आँसुओं से
दामन भिगो रहा हैं अभी।
ए ख़ुदा, माँ वसुंधरा पर
नेमतों से उजियारा कर,
कर्मवीर करता हैं गुज़ारिशें,
यूँ तिमिर न कर अभी।
कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)