माँ - कविता - नीरज सिंह कर्दम

नौ महीना सोया था मैं
अपनी माँ के गर्भ में,
सुख दुःख से एक दम दूर
कितना कष्ट सहा होगा 
मेरी माँ ने,
मुझे इस दुनिया में लाने में।

आया जब इस दुनिया में
किलकारियाँ भरी मैंने
अपनी माँ के आँचल में।

हमेशा मुस्कुराती
सीने से लगाकर
लोरिया सुनाती जब 
मेरी माँ,

जब रोता था भूख से
तब अपने आँचल में ढककर
मेरी भूख शान्त करती थी
मेरी माँ।

उंगली पकड़कर
चलना सिखाया,
डगमगाते क़दमों को
सम्भलना सिखाया।

हो गया हूँ
कितना भी बड़ा आज मैं
पर माँ के लिए आज भी
वही बच्चा हूँ।

ग़ुस्से से ज़्यादा
प्यार करती है माँ,
अपने हाथों से खाना खिलाकर
दुलार करती है माँ,
माँ की ममता में
दुनिया बसती है।

नीरज सिंह कर्दम - असावर, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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