माँ - कविता - आलोकेश्वर चबडाल

प्यासे को पनघट है माँ।
पीपल छाया वट है माँ।।

नीर पीर सब छूमन्तर,
गंगा जी का तट है माँ।

हर डोरी पर चल पाती,
एक पारंगत नट है माँ।

जादूगर के जादू सी,
चटपट है झटपट है माँ।

शक्ति सौ गुनी कर देती,
मंत्रों का वो फट है माँ।

शैशव खेले जी भर कर,
ममता की वो लट है माँ।

अभय बाँटती निर्भय होकर,
राघवेन्द्र की रट है माँ।

पाठ पढ़ाती जीवन के,
गुरुकुल मंदिर मठ है माँ।

काली चंडी दुर्गा सी,
संकट पर संकट है माँ।

आलोकेश्वर चबडाल - दिबियापुर (उत्तर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos