भूल करते रहे - कविता - गुड़िया सिंह

ख़ुद से रहे अनजान,
औरो को समझने की,
भूल करते रहे,
सारी उम्र इसी में गुज़ार दी,
सभी ही तो काम ये,
फ़िजूल करते रहे।

ना बाँटी किसी को खुशियाँ,
सिर्फ़ अपनी परवाह की,
दूसरों के हक़ का भी छीन कर,
सब कुछ पाने की चाह की।

ना दिया किसी को मान कभी,
सिर्फ़ अपना सम्मान ढूँढा,
झाँका ना एक बार कभी,
अपने गिरेबान में,
दुसरो में ईमान ढूँढा।

ना समझी तक़लीफ़ें किसी की,
ना दुःख में किसी का, 
साथ ही निभाया,
जाने किस भ्रम में पड़कर
स्वयं को इंसान बताया,

ना रखी लाज इंसानियत की,
फिर भी किस बात का,
ग़ुरूर करते रहे,
ख़ुद से रहे अनजान,
औरो को समझने की,
भूल करते रहे।

गुड़िया सिंह - भोजपुर, आरा (बिहार)

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