दो बातों को सहना सीखो - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार

दो बातों को सहना सीखो।
औ नदिया सा बहना सीखो।।

कोई शख़्स गले पड़ जाए,
बेबाकी से कहना सीखो।

आलीशान महल दे डाला,
इन महलों में रहना सीखो।

उजियारे को मिलती नफ़रत,
रातों का तम दहना सीखो।

यदि खेतों को जोत रहे हो,
तो बैलों को नहना सीखो।

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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