बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)
आईना - कविता - बृज उमराव
मंगलवार, मई 18, 2021
दर्पण कभी झूठ न बोले,
देता सबका साथ।
मुख की आभा इंगित करता,
दिन हो या फिर रात।।
सुघर सलोना देख के मुखड़ा,
दर्पण ख़ुद शर्माता है।
करे आंकलन ख़ुद अपना,
सेवा में सिमटा जाता है।।
अभिव्यक्ति का झंडा ऊँचा कर,
क्या क्या लोग बोलते हैं।
दर्पण तो अपना काम करे,
मुखड़े भाव तोलते हैं।।
कोई नहीं सगा इसका,
जो सामने आता वह दिखता।
तस्वीर साफ़ उज्जवल निखरी,
रहता नहीं कोई परदा।।
कार्य क्रियान्वयन मे तत्पर,
तैयारी का समय नहीं।
सामने बिम्ब परिलक्षित हो,
तब शंका की वजह नहीं।।
धूमकेतु सा रहे चमकता,
प्रकाश में गुलशन होता।
प्रत्यावर्तन के प्रभाव में,
सारा घर रोशन होता।।
नहीं ज़रूरत तथ्यों की,
आईना गवाही देता है।
तर्क वितर्क की वजह नहीं,
सत्य सामने रखता है।।
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