दिलवर से दिल लगाना चाहता हूँ - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122 2122 2122

दिलवर से दिल लगाना चाहता हूँ।
प्रेम का दरिया बहाना चाहता हूँ।

करेंगे हम मोहब्बत ता-उम्र उनसे,
मिलके ये उनसे बताना चाहता हूँ।

दिल में कई ख़्याल, सपने हैं कई,
सपनों का शहर बसाना चाहता हूँ।

कभी ना शिकायत करेंगे उनसे हम,
वफ़ा का ये यकीं दिलाना चाहता हूँ।

ना मिलेगा कोई, हम सा ज़माने में,
चाहत का इंतिहा दिखाना चाहता हूँ।

ख़ुदा के बारगाह में जाकर हर रोज़,
मोहब्बत का शमा जलाना चाहता हूँ।

'अनजाना' न समझे कोई भी यहाँ पे,
दिल अपना चीर के दिखाना चाहता हूँ।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

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