जबसे हो प्रिय तुम आई - गीत - करन त्रिपाठी

सब लतिकाएँ लहक उठीं,
सुरभित हुई ये तरुणाई।
जीवन के सूने उपवन में,
जबसे हो प्रिय तुम आईं।।

चटकी कालिया डाली पर,
मधुवन की सूनी राहों में। 
ज्यों चाँद छिपा हो बादल में,
ऐसे तुम सिमटी बाहों में।।

साँसों में बसी तुम ऐसे कुछ,
जैसे पावन एक अंगड़ाई। 
जीवन के सूने उपवन में,
जबसे हो प्रिय तुम आईं।।

अनुराग लुटाती सी अवनी,
सौरभ बिखराती मंद पवन। 
हो रेशम सी झिलमिल झाँकी,
मंदिर की आरती दिव्य हवन।।

कजरारी अँखियों का जादू,
ऊपर से यूँ भोली चितवन। 
थी लाज भरी घूँघट पट में,
झलके झलके पावन गूँजन।। 

झंकृत होते थे हृदय तार,
बजती मन मधुरिम शहनाई। 
जीवन के सूने उपवन में,
जबसे हो प्रिय तुम आईं।।

अधरों पर मुस्कान रहे,
ये दिन सदा ही याद रहे। 
कुसुमित हो नव पल्लव,
साथ हमारा आबाद रहे।।

यौवन का राग विहाग करे,
तन भरे हिलोरे अँगड़ाई। 
जीवन के सूने उपवन में,
जबसे हो प्रिय तुम आईं।।

करन त्रिपाठी - हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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