भ्रूण हत्या - कविता - बृज उमराव

बापू मैं भी जीना चाहूँ,
जग में मुझको आने दो।
आप युगल की सेवा संग,
जीवन की रीति निभाने दो।।

ग़लती नहीं किसी की कोई,
जीवन बिंन्दु कोख में आया।
भ्रूण परीक्षण करवा करके,
ज्ञान लिंग का तुमने पाया।।

रुचिकर क्षेत्र में आगे चलकर,
नाम आपका कर दूँगी।
मधुर सुरीली वाणी से मैं,
जीवन में रस भर दूँगी।।

बहिन न होगी भाई को,
राखी किससे बंधवाएगा।
नारी वंस न होगा तो,
यह संतति कौन चलाएगा।।

माँ तो बेटी चाहेगी,
लक्ष्मी के स्वागत को आतुर। 
आप पाप में मत डूबो,
जीवन तो यह क्षण भंगुर।। 

आत्म बोध कर ख़ुद सोंचो,
जो तुम करने वाले हो। 
बोया बीज जो बगिया में,
क्यों नाश वो करने वाले हो।। 

रुह पुकार रही मेरी,
पहले तो जग में आने दो। 
हरी भरी इस बगिया में,
कली को तुम खिल जाने दो।। 

यदि आने से मुझको रोका,
रंगोली कौन बनाएगा। 
तीज और त्योहारों में,
घर को कौन सजाएगा।। 

लड़का-लड़की में भेद न हो,
साश्वत समाज विकसित करिए।
कुछ भी करके बच्चों को,
अच्छे से शिक्षित करिए।। 

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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