एक वही बस सहारा - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"

कभी दिन कभी रात,
ये समय का चक्र सारा,
जो लड़ा कभी जीता,
कभी सीखा कभी हारा।
कभी सुख कभी दुख,
परमात्मा बस सहारा,
कठपुतली बन नाच बस,
वो करता है इशारा।
एक दूजे से लड़ते रहो,
ये मेरा ये तुम्हारा,
अपनी अपनी सब गाते,
बजाते रहे नगाड़ा।
बिन इशारे पत्ता न हिला,
हर इंसान उससे हारा,
गिराता भी सँभाल कर,
एक वही बस सहारा।।

सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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