रूहानी चीज़ है उपवास - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

निश्चित ही उपवास आत्मा की शुद्धि का शानदार उपकरण है। उपवास एक रूहानी चीज है ना कि केवल शारीरिक। इसका रुख ईश्वर की तरफ़ होता है। उपवास से सोई हुई आत्मा, अंतरात्मा जाग उठती है। अध्यात्मिक उपवास एक ही आधार रखता है, वह दिल की सफाई। यदि यह एक दफ़ा हो गई तो मरने तक क़ायम रह जाती है। वरना फांके का कोई दूसरा मक़सद नहीं हो सकता।

उपवास करने से मन अंतर्मुखी हो जाता है। दृष्टि निर्मल हो जाती है। देह व रूह निर्मल बनी रहती है।
महात्मा गांधी जी ने कहा था कि उपवास सत्याग्रह के शस्त्रागार में से एक महान शक्तिशाली अस्त्र है।
ईश्वर में अगर जीती जागती श्रद्धा ना हो तो दूसरी योग्यताएँ बिल्कुल निरूपयोगी हो जाती हैं। उपवास स्वयं की प्रेरणा से ही रखना सार्थक होता है। विचार रहित मनोदशा एवं व्यक्ति की अनुकरण वृत्ति से वह कभी नहीं रखना चाहिए।
उपवास किसी के शरीर पर असर डालने के लिए नहीं किया जाता, वह तो दिल को छूता है। उपवास का असर टिकाऊ होता है।

उपवास से प्रार्थना की तरफ तबीयत तेजी से आती है  ज़ाहिर है कि उपवास एक रूहानी ताकत है। उपवास हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसका सिर्फ़ धार्मिक महत्व ही नहीं शारीरिक रूप से भी बहुत महत्व है।

उपवास दो शब्दों से बना है उप यानी आत्मा वास यानी करीब अर्थात आत्मा के करीब होना। उपवास के द्वारा आत्मिक एवं शारीरिक फ़ायदे होते हैं। उपवास और टहलने से स्वास्थ्य भी सही रहता है और उपवास और प्रार्थना से आत्मा स्वस्थ रहती है।
टहलने से देह को व्यायाम मिलता है, प्रार्थना से आत्मा को  व्यायाम मिलता है। उपवास देह व रूह दोनों को शुद्ध करता है। अतः उपवास व्यक्ति पर निर्भर करता है, कि उद्देश्य कितना सार्थक है।

जब तक मन, वचन और कर्म से आप शुद्ध और निश्छल नहीं होते तो यह सारे उपवास भी व्यर्थ हो जाते हैं।
उपवास स्वप्रेरणा से ही रखने चाहिए जिनसे बेशक़ फ़ायदा मिलता है दूसरों के दबाब से नही। परंतु कुछ मामलों मे  उपवास रखना वर्जित होता है। कमज़ोर और बीमार व्यक्ति को उपवास नहीं रखना चाहिए। इसके अलावा बच्चों, बुजुर्ग और गर्भवती स्त्रियों को भी उपवास नहीं रखना चाहिए।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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