खिले पूर्ण नित चन्द्रिका, पूनम रात मयंक।
रोग शोक से मुक्त जग, कुसमित पुष्प शशांक।।
सोम सरस मधुपान से, हो जीवन आनंद।
निशि कोमल सम हृदय हो, निशिचन्द्र आसन्द।।
वैर भाव रजनी तजे, करें चन्द्र सहयोग।
चन्द्रप्रभा सौतन बहन, मानी विधि संयोग।।
विनत धीर तारक खचित, शीतलता दे लोक।
विलसित कमली कुमुदिनी, चन्द्रहास हर शोक।।
लखि मयंक हर्षित हृदय, आतुर प्रिय अनुराग।
मदमाती है शशिप्रिया, साजन मिल रतिराग।।
शिवशेखर विधु देखकर, कुपित चाँदनी रूठ।
मना निशाकर थक गया, सजना बोले झूठ।।
सुन्दर चपला चन्द्रिका, कमलाधर मुस्कान।
प्रिया निशा दुःखार्त मन, देख चन्द्र अवमान।।
फँस मयंक नवप्रीति में, सच है रजनी कोप।
लखि मृगनयनी चन्द्रिका, करती शशि आरोप।।
निशि मयंक की अस्मिता, मानक शशि अस्तित्व।
कहाँ खिले शशि चन्द्रिका, रजनी बिन व्यक्तित्व।।
आनंदित मन यामिनी, रात्रि अपर नवप्रीत।
देख निशा विधु रागिनी, चन्द्र प्रभा नव मीत।।
शबे सल्तनत चाँद का, बन अम्बर नभ ताज।
खिली खिली प्रिय चाँदनी, पूर्णिम प्रीत आगाज़।।
निशिचन्द्र की चाँदनी, शान्ति मुदित भू लोक।
हो निकुंज कुसमित फलित, मिटे सकल मन शोक।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली