मास्क लगाना - कविता - आशाराम मीणा

शीश महल निर्जन हो गए अपना लगे बेगाना।
महानगर सुनसान हो गए हैं शहर हुऐ विराना।।
सुनी सड़के विधवा लगती मिले नहीं रवाना।
साँसें सबकी रुकी हुई है सुन नित नए ऐलाना।।
सब कुछ तेरा नप जाएगा प्रकृति का पैमाना।
अपने आपकी रक्षा करो मुँह में मास्क लगाना।।

वक़्त ही हैवान हो गया दुष्कर हो गया जीना।
क़ैदी हो गए अपने घर का देखो नया तराना।।
आँसू मज़दूरों के टपके मुश्किल घर चलाना।
हृदय पिघल गया पंछी का भूला पंख फैलाना।।
फल तेरे कर्मों का बंदे किसकी करें भर्त्सना।
अपने आपकी रक्षा करो मुँह में मास्क लगाना।।

वक़्त की नज़ाकत समझो खुद से सीखो जीना।
बुरा समय भी गुज़रेगा मन में हौसला रखना।।
दो गज की दूरी में चलना हाथ दूर ही रखना।
काम आना गैरों की भी और ख़ुद को बचाना।।
नए दौर में फिर मिलेंगे लेखक का है सपना।
अपने आपकी रक्षा करो मुँह में मास्क लगाना।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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