प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)
दुःख ही तो है - कविता - प्रवीन "पथिक"
शुक्रवार, अप्रैल 30, 2021
दु:ख!
कर्तव्य पथ का बोध कराता है।
दु:ख!
अपनों के प्रेम की परीक्षा लेता है।
दु:ख!
दूसरों के दुःखों की अनुभूति कराता है।
दु:ख!
कभी अपनों को मिलाता है तो,
दु:ख!
कहीं अपनों से बहुत दूर कर देता है।
सारा चक्कर दुःख का ही तो है!
गर दुःख न हो तो,
ज़िन्दगी में सुख की अनुभूति ही न हो।
दुःख न हो तो,
अपनों का महत्व ही विदित न हो।
दुःख ही तो है;
जो प्रेम की परिभाषा को पुष्ट करा देता।
दुःख!
जितना दुःख भरा शब्द है;
उतना ही अवश्यंभावी है ज़िन्दगी के लिए।
दुःख के पश्चात,
सुख का सवेरा एक नई किरण के साथ;
प्रकाशवान होता हमारी असल ज़िंदगी में।
सदैव
खुशियों के साथ!
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