जागो जागो हे भगवान, ग़फ़लत में ज़ान।
सचमुच अटकी सबकी, टूटी क्षूठी शान।
फट रही छाती घर-घर, दुखी हरेक इंसान।
गाँव-गाँव शहर-शहर, धधक रहे शमशान।।
कितना बेबस है इंसान...
सो रहे हुक्मरान सारे, जागे कवि फ़क़ीर।
कर्तव्यनिष्ठ डॉ. बेबस, छलके नैनन नीर।
ऑक्सीजन कमी से, श्वांसे हुई अधीर।
हाय! हाय! क्रंदन-आँसू, फूटी जन तक़दीर।।
कैसे बाँधू अब धीर...
मेरे भारत की माटी थी चंदन और अबीर।
कोरोना काल ने बदली भारत की तस्वीर।
सागर चरण पखारे था, लौटा नदी में नीर।
विश्व गुरु के देखे सपने, चुभे दंश सम तीर।।
हाय! हाय! तक़दीर...
माफ़ करो हे शिव-शंभू, ग़फ़लत में हर ज़ान।
जगदगुरु ब्रह्माजी श्रीहरि, दो जीवन का दान।।
अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)