जग की पीर हरो रघुनंदन - गीत - रमाकांत सोनी

कौशल्या के राज दुलारे,
जन जन की आँखों के तारे।
तिलक करेंगे लेकर चंदन,
जग की पीर हरो रघुनंदन।।

आज अवध में आप पधारें,
चमक उठे क़िस्मत के तारे।
दशरथ नंदन हे राजाराम,
आराध्य प्रभु जन सुखधाम।।

रघुपति राघव हे करुणाकर,
विपदा हरो प्रभु अब आकर।
धनुष बाण लेकर आ जाओ,
अंधकार में आप दिवाकर।।

विकट समय है पार लगाओ,
मंझधार में डूबी नैया।
भक्त खड़े करते सब वंदन,
जग की भीर हरो रघुनंदन।।

दीनदयाल दया के सागर,
तेरी लीला है अपरंपार।
महामारी अब पाँव पसारे,
सुरसा सी कर रही विस्तार।।

दीन दुखी सब शरण आपकी,
कृपा करो हे दया निधान।
त्राहि-त्राहि का फैला क्रंदन,
जग की पीर हरो रघुनंदन।।

असुरों को प्रभु ने संंहारा,
रावण अहिरावण को मारा।
राम दुलारा हनुमत प्यारा,
दुष्टों को भवसागर तारा।।

राम नाम से पत्थर तिर जाते,
सुमिरन से नर सब सुख पाते।
रट रट नाम सब करते वंदन,
जग की पीर हरो रघुनंदन।।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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