माना कि मुझमें अभी वो रवानी नहीं हैं,
लेखनी निखार दे वो कहानी नहीं हैं।
कोशिश भी ना करूँ गिर कर उठने की,
इतनी कमज़ोर भी मेरी ज़िंदगानी नहीं हैं।
हार कर, रो कर, गिर कर देखा,
फिर भी आँख में पानी नहीं हैं।
नादान कहते हैं, अपनों से बढ़ कर गैर होते हैं,
वास्तव में यह फ़लसफ़ा, सिर्फ़ मुँह ज़ुबानी नहीं हैं।
कमाल करतें हैं कमियाँ निकालने वाले
खूबियाँ उन्हे हज़म होने वालीं नहीं हैं।
चलो छोड़ो जाने भी दो जनाब,
वैसे भी वो सुधरने वाले नहीं हैं।
शमा परवीन - बहराइच (उत्तर प्रदेश)