पूरनमासी से पहिले
प्रफुल्लित है तन मन,
चाँद-चाँदनी मे डूबा
चमक उठा जन मन,
छिटक गई है चाँदनी
खिल उठी धरा तरंग,
पय की सागर मे हिलोरें
विपिन मे है खग शोर।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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