मेरे पूर्वज - कविता - गोपाल मोहन मिश्र

मेरे पूर्वज,
कहाँ चले गए आप,
किस धुँध में खो गए आप,
सुर वीणा के तार छेड़कर,
एक नई पीढ़ी की नींव रखकर,
कहीं अनंत में गुम हो गए आप।

मेरे पूर्वज,
संवेदनाओं के स्वर जगाकर,
मुझसे आत्मीय संबंध बनाकर,
एक संसार नई बसाकर,
जग से मुँह फेर गए आप,
कहाँ चले गए आप?

मेरे पूर्वज,
छोड़ गए आप पीछे मुझको,
पर आप इतना समझ लीजिए,
आपके द्वारा स्थापित मानदंडों को,
स्वयं और अगली पीढ़ी तक सहेजूँगा मैं,
आपकी संवेदनाओं की थाती,
रखूँगा मन के कोने में ही कहीं मैं।

मेरे पूर्वज,
सतत इन अविरल आँखों में,
बसी रहेगी तस्वीर आपकी,
मेरी भावनाओं के दरम्यानों में
जीवनपर्यंत जीवन सार बनकर,
सिर्फ़ बसे हैं आप,
और सदा ही बसे रहेंगे आप।

गोपाल मोहन मिश्र - लहेरिया सराय, दरभंगा (बिहार)

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