माह फागुन का आया - रोला छंद - महेन्द्र सिंह राज

उड़ता रंग गुलाल, माह फागुन का आया। 
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।। 

साडी़ भीगी मोर, पिया का  कुर्ता भीगा।
पिया मोर चितचोर, कहीं ना हिला न डीगा।
सजन दिखाए नाज, आज मम मन कोभाया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

उड़ता रंग गुलाल, माह फागुन का आया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

व्योम हो गया लाल, शाम भी हुई सुहानी।
मोहें लागे लाज, पिया करते मनमानी।
मुझको अब तो छोड़, बलम सब भीगी काया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

उड़ता रंग गुलाल, माह फागुन का आया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

अब तो बीती शाम, निशा थोड़ी गहराई।
चढा़ पिया पर भाँग, और मैं ली अंगडा़ई।
देख रुप तब मोर, पिया ने मुझे छकाया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

उड़ता रंग गुलाल, माह फागुन का आया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

जब सब जगे प्रभात, भाँग का नशा न भागा।
बोला मोर मुडे़र, प्रात होते ही कागा।
जागो हुआ उजास, पिया ने मुझे जगाया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

उड़ता रंग गुलाल, माह फागुन का आया।
ख़ुशियाँ हैं चहुंओर, सजन ने रंग लगाया।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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