हादसा - ग़ज़ल - संजय राजभर "समित"

भूख से वो हाड़ सा लगता है।
हाकिमों को हादसा लगता है।। 

आग की लपटों में ख़ाक बस्तियाँ,
बिल्डरों को भाव सा लगता है।

मारपीट हुआ बयानों से जो,
मगर ग़ैर की चाल सा लगता है।

जलकर मरी है हमारी बेटी,
हाय पर अब काश सा लगता है।

बाँध टूटा है बहाना देखो,
काम तो यह बाढ़ सा लगता है।

बोलना साफ 'समित' हुनर तेरा,
मगर उनको रार सा लगता है।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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