संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
हादसा - ग़ज़ल - संजय राजभर "समित"
मंगलवार, मार्च 30, 2021
भूख से वो हाड़ सा लगता है।
हाकिमों को हादसा लगता है।।
आग की लपटों में ख़ाक बस्तियाँ,
बिल्डरों को भाव सा लगता है।
मारपीट हुआ बयानों से जो,
मगर ग़ैर की चाल सा लगता है।
जलकर मरी है हमारी बेटी,
हाय पर अब काश सा लगता है।
बाँध टूटा है बहाना देखो,
काम तो यह बाढ़ सा लगता है।
बोलना साफ 'समित' हुनर तेरा,
मगर उनको रार सा लगता है।
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