उपहार - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

हमें जो मिला है
ये मानव शरीर 
इस पर गर्व कीजिए,
इसे ईश्वर से मिला
खूबसूरत उपहार समझिए।
उपहार मिलने पर 
जैसे हम नाचते गाते हैं
फिर संसार के 
इस सबसे बड़े उपहार का 
उल्लास मनाने में
भला क्यों शरमाते हैं?
चार दिन की ज़िंदगी का
खुलकर आनंद उठाइए
हँसते नाचते गाते हुए
ज़िंदगी का उत्सव मनाइए,
संसार उत्सवों से भरा पड़ा है
यही सबको समझाइए।
हर किसी को ये बात
खुलकर समझाइए,
जीवन उत्सव मनाइये
खुश रहिए खुशियाँ बाँटिए
हँसते, नाचते, गाते रहिए
खुशियों के साथ उल्लासित
जीवन बिताइए।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos