नारी सम्मान - कविता - आलोक रंजन इंदौरवी

घर रूपी उपवन शोभित भी नारी से होता है,
मन रुपी मधुबन शोभित भी नारी से होता है।

मर्यादा प्रेम सुवासित हो इससे महका करता,
गीतों के सावन की शोभा नारी से होता है।

उत्कर्ष सदा इससे जग पर उपकार इसी का है,
जीवन ये अपना मन भावन नारी से होता है।

करुणा की मूर्ति प्रेम शीला कुल की मर्यादा है,
पुरुषों की उन्नति भी पावन नारी से होता है।

विपरीत परिस्थिति में इसका सहयोग अपेक्षित है,
घर में खुशियों का प्यारा धन नारी से होता है।

घर के हर एक सदस्यों पर ये प्यार लुटाती है,
उत्सव खुशियों का तो आँगन नारी से होता है।

जिस घर में इसकी मर्यादा का पालन होता है,
उस घर में प्यारा स्वर्ग सृजन नारी से होता है।

आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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