नारी - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"

नारी का जब-जब अपमान हुआ है,
तब-तब ज़बरदस्त इंतक़ाम हुआ है।

नारी कोमल हृदय है कमजोर नहीं,
उसके त्याग, ममता का छोर नहीं।
वो हँसे तो पानी का फव्वारा लगे,
गुस्साए तो दहकता ज्वाला लगे।

तक़लीफ़ में जब सुबह से शाम हुआ है,
तब-तब ज़बरदस्त इंतक़ाम हुआ है।

नारी से ही घर गृहस्थी सवंरता है,
उसके दम से कोना-कोना महकता है।
वह कई सारे रूप में मिल जाती है,
माँ, बहन, बेटी, बीबी के रूप में दिख जाती है 

घर के जगह कोठा जब मुकाम हुआ है,
तब-तब ज़बरदस्त इंतक़ाम हुआ है।

कामयाब पुरुष के पीछे नारी का हाथ होता है,
जग जीतते जब नारी का हौसला साथ होता है।
जहाँ नारी खुशी का एहसास करती है,
बिन बुलाए ही घर में लक्ष्मी वास करती है।

बेखता जब नारी के सर इल्ज़ाम हुआ है,
तब-तब ज़बरदस्त इंतक़ाम हुआ है।

नूरफातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos