करना ऐतबार नहीं - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

हमको छोड़ो
तो कोई बात नहीं,
पर औरों का
करना ऐतबार नहीं।
थी
मुझमें
आपके
प्यार की चाहत,
औरों को
तेरे जिस्म
के सिवा,
कोई
सरोकार नहीं।
तेरी एक झलक
के लिए
रहते थे बेचैन,
बेताब कहीं,
गैर तेरी
कद्र न करेंगे,
मानेगे तुझे
मनोरंजन सही।
मिलती थी न,
जब तुम
हमको,
हम
होते बेसुध
जैसे चातक चकोर बिन।
गैरो का
आपसे
मिलना
जैसे,
खाल शेर कि
भेड़ियों का तन।
न समझ पाए
न सोचा था कभी,
होगी हमसे
तकरार,
औरों से
इकरार कहीं।
हमको छोड़ो
तो कोई
बात नहीं,
पर औरों का
करना ऐतबार नहीं।
कोरे काग़ज़ पे
लिखा करते,
प्यार से
इत्मीनान से
नाम आपका।
पढ़ कर
नाम तेरा
मग्न रहते थे,
ख़्याल न रहता
सुबह शाम का।
गैर तुझे
दिल से नहीं,
मन से नहीं,
बस अख़बार का
टुकड़ा समझेंगे।
पढ़ कर
एक बार
पलट कर
ना देखेंगे,
तू तड़पेगी,
और गैर
हँसेंगे।
पर हम
तेरे सुख मे सुखी
तेरा दुःख
हमें कभी
स्वीकार नहीं।
हमको छोड़ो
तो कोई बात नहीं
पर औरों का
करना ऐतबार नहीं।
हममें थी
आपके प्यार
की चाहत,
औरों को
तेरे जिस्म
के सिवा,
कोई
सरोकार नहीं।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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