अनेकता में एकता - कविता - सुनील माहेश्वरी

आओ यारो फिर से,
आदर्शवादी स्वरूप की,
शृंखला से जुड़ जाएँ।
लौकाचारी निर्मित करके,
एक नई कहानी लिख जाएँ।
हर वक़्त की कशिश में,
सपने हज़ार बुन के,
ख़्वाबों की दास्ताँ में,
एक मंज़िल बन जाएँ।
आओ यारो फिर से,
आदर्शवादी स्वरूप की,
शृंखला से जुड़ जाएँ।
मिलजुलकर सब साथ रहें,
जात पात का बंधन छोड़कर,
चलो किसी के दर्द का,
हम मरहम बन जाएँ।
आओ फिर से,
आदर्शवादी स्वरूप की 
शृंखला से जुड़ जाएँ।
तेरा मेरा भूलकर 
अहंकार को दूरकर,
बसुधैव कुटुम्बकम का,
सिद्धान्त अपना लें।
आओ यारो फिर से,
आदर्श स्वरूप की 
शृंखला से जुड़ जाएँ।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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