दोस्ती - कविता - पुनेश समदर्शी

है दोस्ती ही जो सिखाती है, मुसीबत में साथ देना,
दौड़कर गिरते हुए साथी के, हाथ में हाथ देना।

जब कभी मुसीबत में, मैं उदास होता हूँ,
अपने दोस्तों के, मैं पास होता हूँ।

पल भर में जान लेते हैं, उदासी का कारण,
कुछ नहीं यार, कहकर उन्हें विश्वास देता हूँ।

टूटता है मेरा हौंसला, जब कभी,
पास आ जाते हैं दोस्त, सब तभी।

हारता क्यों है? फिर प्रयास कर,
हम साथ हैं तेरे, विश्वास कर।

ज़िंदगी की मुसीबतों से, जो तू हार जाएगा,
सारी मित्रमंडली से, लगता है मार खाएगा।

है दोस्ती ही, जो मुझे टूटने नहीं देती,
परिस्थितियों को मेरी ज़िंदगी, लूटने नहीं देती।

अथाह सागर ये दोस्ती, चंद पंक्तियों में बताऊँ कैसे?
कभी हँसाते, रिझाते तो खिझाते हैं मुझे, बताऊँ कैसे?

पुनेश समदर्शी - मारहरा, एटा (उत्तर प्रदेश)

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