प्रकृति के दोहराव - कविता - विनय "विनम्र"

हर बचपन अथाह प्यार से भरा होता है,
लेकिन उम्र की लहरें धीरे धीरे उसे
समुद्र की तरह खारा बना देती है।
बहने लगती हैं प्रचंड़ दंभयुक्त हवाएँ,
और गर्व की उमस भरी गर्मी...
फ़िज़ा में तूफ़ान ला देती है।
समा जाते है बड़े-बड़े जलपोत और बेंड़े
काल के विकराल उदर में सदा के लिए
और प्रकृति हर तत्व को पुनः
मिट्टी में मिला देती है।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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