अगर प्रभु से दूर है - कविता - रविन्द्र कुमार वर्मा

हृदय में बसा हरी को, दे त्याग जो भी गुरुर है।
हैं हर कदम पर व्याधियां, अगर प्रभु से दूर है।।

चाहे हो अरबों की माया, हो चाहे बलिष्ठ काया।
सैकड़ों चाकर हो बेशक, चाहे हो सियासी छाया।।
देश में विदेश में, चाहे जितना भी मशहूर है।
हैं हर कदम पर व्याधियां, अगर प्रभु से दूर है।।

चाहे जितनी भी पहचान हो, चाहे मान हो सम्मान हो।
निराधार है निराधार हैं, किंचित भी जो अभिमान हो।।
चाहे हो गुणों की खान तुं, चाहे बुद्धि से भरपूर है।
हैं हर कदम पर व्याधियां, अगर प्रभु से दूर है।।

चाहे रुप की अतिशयता हो, कौशल चाहे आपार हो।
चाहे तुम से मिलने हर घड़ी, व्याकुल सकल संसार हो।।
ना संग कुछ भी जाएगा, ये ही दुनिया का दस्तूर है।
हैं हर कदम पर व्याधियां, अगर प्रभु से दूर है।।

सब के लिए सम्मान हो, परहित भी हो जो ज्ञान हो।
धन हो तो ना प्रपंच हो, निःशब्द हो जो दान हो।।
माँ पिता का सत्कार हो, हरी को तुं तब मंजूर है।
हैं हर कदम पर व्याधियां, अगर प्रभु से दूर है।।

रविन्द्र कुमार वर्मा - अशोक विहार (दिल्ली)

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