रहते हैं - ग़ज़ल - मनजीत भोला

महज़ तू ही नहीं दिल में तेरे कुछ गम भी रहते हैं।
दवाखाने में ज़ख्मों के लिए मरहम भी रहते हैं।।

सरा गर ज़िंदगानी है खुशी गम भी मुसाफ़िर हैं,
ठिकाने पे कभी ज़्यादा कभी ये कम भी रहते हैं।

भले किरदार कोई हो बराबर हक़ है जीने का,
कहानी है तेरी लम्बी, कहीं पे हम भी रहते हैं।

कहो बादे-सबा से तुम सुब्ह हम मिल नहीं सकते,
कभी रातों में आ जाए कि ताज़ा दम भी रहते हैं।

नहीं मुहताज माली के रहे अब फूल इस दिल के,
पता ये चल गया भीतर मिरे मौसम भी रहते हैं।

मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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