सुदृढ हो नित ध्येय - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

चलो सदा सत्कर्मों का पथ,
स्वयं गलत कार्यों को रोको।
चलो सीढ़ियाँ देख समझ कर,
बाधाओं में भी मत रोको। 

सुदृढ़ हो नित ध्येय राह में,
विश्वास हृदय संकल्पित हो।
साहस धीरज सम्बल निर्भय,
स्वाभिमान कवच नित पहन रखो। 

हो पवित्र निश्छल यायावर,
बन सहनशील पथ कदम रखो।
होंगे राहें पाषाण कुटिल,
पुरुषार्थ मिहनती मगन रहो। 

संघर्ष विपद जीवन दर्शक,
जल अग्नि पथिक नित स्वर्ण बनो।
सकल पाप मद झूठ कपट तज,
गुण त्याग शील पथ कदम रखो। 

छलनी होगा सत्पथ अविचल,
उपहास पीड से नहीं डरो।
धोखा हिंसा घृणा द्वेष तज,
सद्मार्ग सार्थ बन अडिग रहो।

निशिकान्त मुदित अरुणाभ भोर,
अभिलाष सिद्धि विश्वास रखो।
रख ध्येय भक्ति उत्थान वतन,
सुख शान्ति खुशी अभिलाष रखो।  

कल्याण स्वयं जब त्राण अपर,
परमार्थ भाव रथ पार्थ बनो।
राष्ट्र प्रेम रग रग अवगाहित,
नित ध्वजा तिरंगा लाज रखो।

आत्मनिर्भर सुपथ ध्वजवाहक,
प्रतिकूल भाव ख़ुद को रोको।
प्रतिकार भाव तज जख़्म सितम,
नीलाभ लक्ष्य उन्मुक्त उड़ो।

सिंहनाद रण पौरुष सम्बल,
अहंकार शत्रु सच से रोको।
विजय गीत सद्नीति प्रीति पथ,
सुनहर अतीत नवकीर्ति रचो।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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