शिव सती प्रेम - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार

शिव और सती का प्रेम अदभुत, अनुपम और पावन था।
सती में थी शिव की आत्मा तो शिव में सती का  मन था।

राजमहल में रहने वाली को एक वनवासी भाए थे।
घोर तपस्या करके सती ने शिव के दर्शन पाए थे।

हृदय के पट खोल शिव ने सती को स्वीकारा था।
ग्रहस्थ शिव जीत गए और वैरागी शिव हारा था।

 दक्ष प्रजापति ने जब शिव का घोर अपमान किया।
 तो सती ने अग्निकुंड में अपनी देह का दान किया।

सती के शरीर संग शिव की आत्मा भी जली थी।
ना किसी से फिर शिव की क्रोधाग्नी सम्भली थी।

तीनो लोकों में शिव सती की देह को लिये घूमते रहे।
उठो सती कहकर शिव मृत देह का माथा चूमते रहे।

ब्रहाण्डं में हाहाकार मचा देवासुर सब घबराये थे।
श्री हरि के समक्ष जाकर अपनी व्यथा सुनाये थे।

51 खण्डो में सती की देह को हरि ने चक्र से काट दिया।
शिव की सुध वापस लाने को शिव का ध्यान बाँट दिया।

पर सुध मे आकर भी शिव पुनः समाधी में हो गये लीन।
विरक्त हो गये सृष्टि से सती की स्मृति में हो गये विलीन।

कई जन्म फिर लिये सती ने अन्तिम जन्म में पार्वती बनी।
पार्वती रूप में शिव से पुनर्मिलन की कामना थी ठनी।

कल्पों की प्रतिक्षा के बाद शिव ने पार्वती रूपी सती को 
पाया था।
शिव के धैर्य और सती के समर्पण ने सबको प्रेम अर्थ समझाया था।

समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos