क्या क्या देखा - कविता - अंकुर सिंह

बदला इंसान नही,
हटा उसका मुखौटा देखा।
मैने तो बदलते ज़ुबान अरु,
पलटते इंसान को देखा।।

भाई-भाई में जंग लड़ते देखा,
पुत्र मोह में अँधा पिता को देखा।
यारों क्या बात करूँ शिक्षा की, 
शिक्षक को अपशब्द कहते देखा।।

बड़े पदवी और नीची सोच को देखा,
कथनी करनी में गिरे इंसान को देखा।
समाज में धूम रहे कुछ धूर्त ईमानदार,
मुखौटो में छिपे ऐसे इंसान को देखा।।

रिश्तें नातों को तार-तार होते देखा,
बद्द्जुबानों से माँ-बहन को नोचते देखा।
क्या बात करूँ मैं शिक्षा की,
मैने शिक्षित लोगों के ईमान को देखा।।

पूछों मत यारों मैंने क्या-क्या देखा, 
गिरते स्तर और बदलते परिवेश को देखा।
बड़े-बड़े वसूलों की बातें करने वालों को,
पल पल में बदलते मैने देखा।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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