सरस्वती वंदना - गीत - सरिता श्रीवास्तव "श्री"

शारदे माँ शारदे कमलासना शारदम् 
वन्दने माँ वन्दने पद्मासना वन्दनम्।।

विद्या वरदान प्रदान, ज्ञान का विस्तार कर
अमिय सा रस पान, तमस का निस्तार कर
हम शरण में हैं तुम्हारी तू जगत उद्धारणम्।। शारदे-

मैं रहूँ सुरभित चेतन, प्रसून मानस रहे माते
पाप हमारे पास ना हो, मन विकार हरो माते
कंठ में आके विराजो संपूर्ण विश्व चराचरम्।। शारदे-

वेद की तू है रचयिता, पुराण तेरी जिव्हा पर
सप्त स्वर तुझसे ही मण्डित, तू धरा के दिव्य पर
हर ऋचा तुझसे बनी तू सृजन चिंतन स्वरम्।। शारदे-

प्रेम की तू मूर्ति माँ अंक में अपने बिठा
ज्ञान की गागर भरी है प्यार से हमपर लुटा
हम हैं तेरे पूत प्यारे तू दया करुणाकरम्।। शारदे-

तिमिर छाया है घनेरा रोशनी दिखती नहीं
एक दीपक की जरुरत मात क्यों सुनती नहीं
हम भरोसे मात तेरे ज्योतिर्मय निर्झरम्।। शारदे-

तू है सरिता ज्ञान की माँ, घूंट हमको भी पिला
वरद हस्त रख मात मस्तक, ज्ञान दीपक दे जला
थाम ले “श्री” हाथ मेरा रक्षक तू शरणागतम्।। शारदे-

सरिता श्रीवास्तव "श्री" - धौलपुर (राजस्थान)

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