डॉ. राम कुमार "निकुंज" - नई दिल्ली
बह निकुंज मादक पवन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सोमवार, मार्च 01, 2021
इन्द्र पवन मिल सूर्य भी, तपा धरा अतिकुप्त।
किया प्रदूषित काट तरु, किया धूप जल लुप्त।।१।।
नव जीवन उल्लास बन, सरसों पीत बहार।
मंद मंद बहता पवन, वासन्तिक उपहार।।२।।
शरद्काल पुलकित कृषक, पकी फ़सल लखि खेत।
मन्द मन्द शीतल पवन, प्रवहित समतल रेत।।३।।
शीतल मन्द प्रवहित पवन, फागुन मादक मास।
प्रमुदित अरूणिम भोर की,सुखद सजन आभास।।४।।
गज़ब प्यार की इन्तहां, दर्द सुलगती आग।
शागीर्दी महकी हवा, प्रियतम संग अनुराग।।५।।
मंद मंद शीतल पवन, हल्की मीठी धूप।
लहराती ये वेणियाँ, चन्द्रमुखी प्रिय रूप।।६।।
बहती पुरबैया हवा, लहराती ये बाल।
मदमाती नवयौवना, सुन्दर नैन विशाल।।७।।
मन्द मन्द बहती हवा, सहलाती हर घाव।
कोयल बन मृदु रागिनी, प्रीत मिलन सम्भाव।।८।।
बहे प्रेम सरिता जगत, शीतल विमल समीर।
वसुधा ही परिवार मन, वर दे होऊँ धीर।।९।।
शीतल मंद समीर नित, कहीं धूप कहँ छाँव।
उमर घुमड़ बरसे घटा, समझो सावन भाव।।१०।।
नव जीवन उल्लास बन, सरसों पीत बहार।
मंद मंद बहता पवन, वासन्तिक उपहार।।१०।।
शीतल मन्द समीर नित, जाग्रत रति मन भाव।
विहंसि चांद लखि चांदनी, मदन बिद्ध चित घाव।।११।।
सर-सरिताओं का कभी, करें न गन्दा नीर।
जीवन के आधार हैं, निर्मल नीर समीर।।१२।।
गाँव की शीतल हवा, सहज सरल परिवेश।
अपनापन मन मुदित हो, नहीं नगर का क्लेश।।१३।।
नहीं पाँव रखते ज़मीं, हवा हवाई बात।
हेतु बने उपहास का, कोपित हो भुवि पात।।१४।।
आग दहशती हवा दे, खो ज़मीर ईमान।
तुले वतन को तोड़ने, लानत है इन्सान।।१५।।
बह निकुंज मादक पवन, नवप्रभात नवरंग।
कुसमित मुख सुरभित प्रजा, लहरे व्योम तिरंग।।१६।।
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