वादा निभा रहा हूँ - कविता - चंदन कुमार अभी

खुशियों वाली महफ़िल को छोड़कर,
तन्हाइयों की महफ़िल में जा रहा हूँ।
तोड़कर तुझसे सारी रिश्तें-नातें,
फिर भी तेरा वादा निभा रहा हूँ।

जो भी वादे किए थे तुझसे,
आज फिर याद दिला रहा हूँ।
भूलूँ नहीं मैं कभी-भी तुझकों,
तेरी यादों में जीवन बिता रहा हूँ।

साहिल-सा हो गयी हमारी क़िस्मत,
दो छोर होता जा रहा हूँ।
क़रीब आना चाहा कश्ती के सहारे,
पर बीच मँझधार में डूबता जा रहा हूँ।

कहने को तो बहुत कुछ है कहना,
लेकिन कुछ कह नहीं पा रहा हूँ।
मजबूरियों की दूरियाँ है हमारे बीच,
इसलिए लिखकर बता रहा हूँ।

पढ़कर इसे तुम ये मत कहना,
मैं फिर से तुम्हें सता रहा हूँ।
थोड़ा-सा भी अमल करना इसपर,
अपने हृदय की बात बता रहा हूँ।

खुशियों वाली महफ़िल को छोड़कर,
तन्हाइयों की महफ़िल में जा रहा हूँ।
तोड़कर तुझसे सारी रिश्तें-नातें,
फिर भी तेरा वादा निभा रहा हूँ।

चंदन कुमार अभी - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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