सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)
फिर वो मुलाक़ात - कविता - संतोष ताकर "खाखी"
मंगलवार, फ़रवरी 23, 2021
फिर कोई एक मुलाक़ात करना हैं,
आज तुमसे एक बात करनी है।
कुछ अधुरा सा समन है जीवन,
चल आज मिल तामील करना है।
दिल जो मेरा तेरे सीने में रह गया,
बाकी रहा जो मिलन, पुरा करना हैं।
छोड़कर रंजीशे दुनियादारी की,
कुछ तेरा-मेरा रहा,
अब हमारा करना हैं।
दूर कर गिले-शिकवे,
पहली मुलाक़ात सी नज़रें करना हैं।
ठहर सा गया हैं
दर्द के दरिया में ये रिश्ता,
चल आज फिर से निर्मल करना है।
ढलने लगा अब ये आफ़ताब फ़लक का,
खल रहा हैं सफ़र
तेरे बिन साथ का।
अहम की राख में दबा अहसास,
फिर से चिराग़ जलाना हैं।
चलती आँधियों को समेटकर,
फिर बस एक झोखा करना हैं।
चल इस बन्धन को,
फ़िर से प्यार बनाना हैं,
भटके दिलो के इस संबन्ध को,
रिश्ता करना हैं।
किस मोड़ पर छुट्टी थी,
ये कहानी भुलाना है।
यादों के उस ढेर से तुझे
मुझे अपना करना है।
टूटे हुए सफ़र को फ़िर से साथ करना हैं,
फिर कोई एक मुलाक़ात करना हैं।।
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