प्रदूषित रक्त - कुण्डलिया छंद - डॉ. अवधेश कुमार अवध

रक्त प्रदूषित हो गया, रिश्ते बिकते हाट।
षड्यन्त्रों की तुला पर, घटते-बढ़ते बाट।।
घटते - बढ़ते बाट  में, रिश्तों की औकात।
दिशा हवा की देखकर, कहते दिन को रात।।
कहते दिन को रात वे, सच्चाई को मार।
फिर भी उनको चाहिए, सच्चा यह संसार।।
सच्चा यह संसार अब, रहा नहीं रे भक्त।
अवध प्रदूषित है जगत, प्रथम प्रदूषित रक्त।।

डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos