सूरज होगा
चाँद होगा
धरा होगी
पर
दिल न होगा
ये हम सब को सोचना होगा।
कंक्रीट के पेड़ होंगे
घरों में दूधिया सुनहरा
फल फलेगा
नलों में ऑक्सीजन
सप्लाई होगा
जैसे आज नल जल।
सब के केंद्र में है "शिक्षा"
जो आज हो गई है
दुर्भिक्ष
न आज समझ है
न समझने की इच्छा
बस थोपा हुआ है
काग़ज़ पर परीक्षा।
इंसान को इंसानियत
की समझ रखनी होगी
करनी होगी अपनी
और धरा की रक्षा
कहीं ऐसा न हो जाए
सब हो जाए
असंवेदनशील
कृत्रिम प्रणाली!
विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)