कोयल वैरन हो गई, हृदय विदारक कूक।
कुहू-कुहू की टेर सुन , हिय में उठती हूक।।
हरियाली है छा गई, खुशहाली चहुँओर।
बिन प्रियतम गीली हुईं, इन आँखन की कोर।।
जड़ चेतन हर्षित हुए, एक नवल उल्लास।
प्रिय का पंथ निहारती, गोरी खड़ी उदास।।
मन में प्रिय की छवि बसी, मधुर मिलन की आस।
अंदर पतझड़ चल रहा, बाहर है मधुमास।।
मधुऋतु में रसहीन हो, सूख रहे मृदुगात ।
तन में तपती ग्रीष्म है, नयनों में बरसात।।
पुरवाई ज्यों आग की, लपटें बनीं कराल।
फूल आग के पुंज से, दहक रहे विकराल।।
बैठी-बैठी सोचती, कब आएँगे मीत।
कहीं प्रतीक्षा में नहीं, जीवन जाए बीत।।
तम रजनी के बाद में, फिर उगते दिनमान।
दुख बीते फिर सुख मिले, विधि का यही विधान।।
मुझ विरहन की पीर का, कभी तो होगा अंत।
कभी इधर भी आएँगे, मेरे कंत वसंत।।
दुख की रजनी घोर तम, जलते कई सबाल।
सकारात्मक सोच का, मरियल हुआ मराल।।
आएँगे सुख दिवस भी, यही आस विश्वास।
तब प्रियतम के साथ में, झूमेगा मधुमास।।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल" - लहार, भिण्ड (मध्यप्रदेश)