जर्जर होते मित्र जग, पले स्वार्थ दुष्कर्म।
लोभ मोह ईर्ष्या कपट, भूल दोस्ती धर्म।।१।।
मानदण्ड सद्मित्र का, भूले कलि सब मीत।
जबतक साधे स्वार्थ निज, सभी बने नवनीत।।२।।
तारक जो हो आपदा, प्रेरक हो सत्काम।
गायक हो गुण मीत का, जीवन हो अभिराम।।३।।
मातु पिता अरु गुरु सखा, है ईश्वर उपहार।
नित प्रतीक विश्वास का, जीने का आधार।।४।।
राग द्वेष से मुक्त हो, सुख दुख में हो साथ।
त्याग शील गुण युक्त हो, सदा बढ़ाए हाथ।।५।।
थल जल या आकाश से, आये आपत्काल।
तन मन धन से मीत का, करे मदद हर हाल।।६।।
ललित शुद्ध पावन हृदय, कृष्ण सुदामा मीत।
राम भील निःस्वार्थ सम, बने मीत संगीत।।७।।
दोस्ती का पैगाम पा, बना मनुज खुशहाल।
कायल हों ईमान का, इज़्ज़त दें हर हाल।।८।।
क्या बिना आस्था दोस्ती, मानस भरा प्रपंच।
जबतक चाहत साथ है, दे धोखा हो रंच।।९।।
आज मिले कहाँ दोस्ती, जो आपद में साथ।
स्वार्थ छद्म धोखाधड़ी, अवसर खींचे हाथ।।१०।।
मीत अल्प नित कीजिए, मिले नहीं मनप्रीत।
लघुतर हो बस दोस्ती, सद्भावित हो मीत।।११।।
नेह समादर मीत को, करें नहीं अपमान।
टिके दोस्ती आस्था, दें आपस सम्मान।।१२।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली