बनें सेतु जग शान्ति का, समरसता बन्धुत्व।
हो शिक्षा सापेक्ष जग, बचे मनुज अस्तित्व।।
तजें घृणा छल कपट मन, बने सेतु समाज।
रखें भाव परमार्थ मन, रामराज्य आगाज़।।
आपस में सौहार्दता, धर्म जाति तज भेद।
बने सेतु चहुँ दिशि प्रगति, हो बाधा उच्छेद।।
सद्भावन समता जगत, बने सभी मनमीत।
दीन-धनी निर्भेद हो, रिश्ते हों नवनीत।।
अमन चैन मुस्कान जग, सेतु बन्ध विश्वास।
तजें कोप निज स्वार्थ मन, सब जन सुख अभिलास।।
सत्य मधुर सम्बन्ध जब, भाव हृदय उद्गार।
न्याय सेतु धर्मार्थ नित, मददगार सुख सार।।
गंगा सम पावन हृदय, निर्मल स्वच्छ विचार।
शील त्याग गुण कर्म रत, सेतु बन्ध आचार।।
सेतु सदा जीवन जगत, सुख दुख मय संसार।
सत्य धीर साहस सबल, नैतिक पथ उद्धार।।
बने सेतु ख़ुशियाँ मनुज, करें प्रकृति सुखसार।
खिले कुसुम सुरभित वतन, रोपण तरु उपहार।।
हो रचना उन्नति वतन, समरसता मधुशाल।
शान्ति सुखद खुशियाँ मुदित, सेतु बन्ध रसधार।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली