घमंड छीन लेता है खूबसूरत रिश्ते - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

यह नितांत सत्य है कि घमण्ड आपके खूबसूरत रिश्ते छीन लेता है।
जब व्यक्ति अपनी उपलब्धियों पर घमण्ड कर बैठता है तो स्वयं को सर्व श्रेष्ठ समझ लेता है उसका प्रेम भाव विलीन होने लगता है घमण्ड के अँधेरे में डूबने लगता है वह अज्ञान प्राणी।

प्रेम में मन का समर्पण करना होता है। जब तक इंसान अहंकार में पड़ा रहता है तब तक उसे कुछ प्राप्त नहीं होता, या यूँ कहें कि अहंकारी के अंदर प्रेम नहीं रह जाता। उसका विवेक भी नष्ट हो जाता है।

दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अहंकार का अर्थ होता है अपनी सत्ता को महसूस करना। अहंकार नकारात्मक तब हो जाता है जब नकारात्मक दिशा में चला जाए, जिसे हम घमंड कहते हैं और यह मिथ्या अहंकार तब पैदा होता है जब हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं अपने को श्रेष्ठ साबित करते हैं।
जबकि यह सत्य है कि प्रकृति में कोई भी चीज एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है। प्रकृति में सब का अपना महत्व है, एक छोटे से तिनके का भी और पत्थर के टुकड़े का भी।

मनुष्य में अहंकार आने के कई कारण हो सकते हैं धन, रूप, ज्ञान और कई गुण जो कि सामान्य लोगों से अधिकता होने पर मनुष्य में अहंकार आ जाता है।
अहंकार आने का  स्वाभाविक कारण सफलता होती है। बहुत से लोग उसी सफलता को श्रेष्ठ मानकर औरों को तुच्छ समझते हैं।
अहंकार एक  नकारात्मक मनोभाव है, जो इंसान को क्षणिक सुख तो दे सकता है लेकिन भविष्य में यह आपसे आपके खूबसूरत रिश्ते छीन लेता है।

अहंकार आने का मुख्य कारण ये है "मैं", "मुझसे", "मेरे द्वारा" आदि है। अगर हम सोचे कि सब ईश्वर द्वारा ही है तो हममें से "मैं" यानि अहंकार निकल जाएगा और तब हम प्रेममय में हो जाएँगे सम्पूर्ण विश्व को प्रेम की दृष्टि से देखेंगे। तब हम स्वयं को सर्वश्रेष्ठ नहीं समझेंगे।

हम कह सकते हैं कि अहंकार में प्रेम की अनुपस्थिति हो जाती है। या यूँ कहें कि अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति के परिणाम स्वरुप होता है।
मनुष्य के जीवन की उपलब्धियाँ ज्ञान के अभाव में व्यक्ति को अहंकारी बना देती हैं वह भूल जाता है कि जो भी उसने प्राप्त किया है वह सदा के लिए नहीं है।

जहाँ अहंकार होता है वहां प्रेम संभव नहीं, अहंकार जीवन की प्रतिष्ठा पर कलंक लगा देता है।
अहंकार एक अंधकार है तो प्रेम है उजाला।
अपने आप को सर्वश्रेष्ठ, सक्षम, बलिष्ठ, धनवान, ज्ञानवान, रूपवान मानना अहंकारी भाव होता है।

जब कोई आपके काम की तारीफ़ करता है तो आप खुश होते हैं, जब बहुत से लोग आपकी तारीफ़ करते हैं तो आप ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ समझने लगते हैं। यही मानकर बहुत से लोगों में अहंकार आ जाता है और उनका विवेक नष्ट होने लगता है। यही उनके दुःख का कारण बनता है।
इसलिए अपनी किसी भी उपलब्धि को ईश्वर को समर्पित करना चाहिए, उनका प्रसाद समझना चाहिए।
अपनी सफलता से व्यक्तित्व को नम्र बनाना चाहिए, जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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