साँझ सकारे - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

आपकी
यादों मे
हमने गुज़ारे
साँझ सकारे।
तुम तो
भूल गई
वो लम्हें
जो अपने
साथ गुज़ारे।
दिल
हमारा लेकर
बेजान किया
बेहाल किया,
राधा
बेवफ़ाई के
बादलो ने
क्या चाहत का
चाँद गुल किया।
न बिखराओ
मोहब्बत कि आभा
लगन करो स्थाई
हमने समझा,
तेरे प्यार को
पाने की बेचैनी
है जितनी
मुझमें,
उतनी ही
प्रीत बसी होगी
मेरे लिए
प्रीत अनोखी
होगी तुझमें।
इस दुनिया
के लोग
बड़े अजूबे
अपनों से
करें किनारे।
आपकी
यादों मे
हमने गुज़ारे,
साँझ 
सकारे।
न होती
शमा की
रोशनी
क्यों आता
परवाना उसके पास,
मिले प्यार
प्रीत की जन्नत
यही थी
परवाने की आस।
न मिली 
प्यार की जन्नत
और परवाना
जल गया बेचारा,
पर
इस युग में 
वो शमा कहाँ
जो प्यार को
दे सके सहारा।
उनके
वादों को
हक़ीक़त समझे
और ख़यालों  ने
बनाया उसको
हमसफ़र,
पर हर पात पात पर
चलने वाली
चिड़िया कब चल पाती
एक डगर।
बहुत दिन
बीते तेरे
बिन
अब न सुहाये
सावन की बहारे,
आपकी 
यादों  मे
हमने गुज़ारे
साँझ 
सकारे।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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