दिल तोड़कर दिल लगाना बुरा है - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन

दिल तोड़ कर दिल लगाना बुरा है!
नज़र से नज़र फिर मिलाना बुरा है!!

वक़्त की नज़ाकत है फ़ासले रक्खो,
चलना संभल कर ज़माना बुरा है!

करो इश्क़ यूँ के अंज़ाम तक पहुँचे,
दिल में रह कर दिल दुखाना बुरा है!

दहलीज़ पे घर की दस्तक रख दो,
ख़ामोशी से घर में आ जाना बुरा है!

रिश्ता दर्दमन्दों से रखना सदा क़ायम,
रिश्ते ज़ुबाँ से महज़ निभाना बुरा है!

मुहब्बत दिल में किसी के जगा कर,
नज़र से दूर फिर हो जाना बुरा है!!

मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)

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