राष्ट्रनायक सच्चे अर्थों में, भारतमाँ का राजदुलारा था,
सात समंदर पार से जिसने, दुश्मन को ललकारा था।
विश्वपटल पर एक नाम वह, अंगारे सा दहक उठा,
शौर्यपुंज जिसकी कीर्ति से, आसमान भी महक उठा।
आज़ाद हिंद फौज का नायक, दिल्ली चलो पुकारा था।
स्वप्न सुनहरा आज़ादी का, पूरा करने को घर छोड़ दिया,
ब्रिटिश हुकूमत की तोपों का, रुख भी जिसने मोड़ दिया।
हुई बग़ावत ब्रिटिश फ़ौज में, जयहिंद दिया अब नारा था।
दुर्भाग्य देश का आज़ादी का, जश्न मनाने वालों में,
बोस नज़र नहीं आए खुशियों के, दीप जलाने वालों में।
स्वतंत्रता की बलिवेदी पर जिसने, जीवन अपना वारा था।
कहीं एक बादल का टुकड़ा, आफ़ताब को ढाँप गया,
राजनीति का कायर मन, आने वाला कल भाँप गया।
दूर किया नज़रों से जो, जनगणमन की आँख का तारा था।
खून के बदले आज़ादी दे, आप कहाँ को चले गए,
कदम कदम पर आपके प्यारे, भारतवासी छले गए।
एक बार तो आते चलकर, भारतवर्ष तुम्हारा था।
राष्ट्रनायक सच्चे अर्थों में, भारतमाँ का राजदुलारा था,
सात समंदर पार से जिसने, दुश्मन को ललकारा था।
मंजु यादव "ग्रामीण" - आगरा (उत्तर प्रदेश)