नव जीवन की चिड़िया - कविता - मयंक कर्दम

सुबह-सुबह सूर्य के स्वागत में,
गाना-गाते, उछल कूद कर रही है। 
ये नाच-नाचकर देखो बच्चों, 
अपने पंख फैला रही हैं। 
एक तरफ़ गाना गाती, 
तो दुसरी तरफ़, 
अपना मुँह फुला रही है। 
ये नव जीवन की चिड़िया है, 
जो हँस के जीना बता रही है। 

दाना, पानी खाकर ये, 
थोड़ा कमर
मटक-मटका दिखा रही है। 
चोंच में मोती है दाना, 
मस्तक नैना चटका रही है। 
सोये बच्चे को वो अपने, 
जल्दी उठना सिखा रही है। 
ये नव जीवन की चिड़िया है, 
जो हँस के जीना बता रही है। 

चलो अब सुबह हुई है,
आँखें खोलो तुम अब सब, 
तन से चादर हटा रही है। 
खुलकर जीना सिखा रही है। 
ये नव जीवन की चिड़िया है, 
जो हँस के जीना बता रही है। 

मयंक कर्दम - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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